Wednesday, 28 December 2016

लोग मुझसे पूछते हैं कि मेरा गुरु कौन है !

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ॐ नमो श्री हरि !
हे श्याम ! 
लोग मुझसे  पूछते हैं कि मेरा गुरु कौन है 
मैं तेरा नाम बता देती हूँ 
लोग कहते हैं कि श्याम तो सबके हैं 
पर तुमने दिक्षा किससे ली 
मैं फिर तेरा नाम बता देती हूँ 
लोग हँस कर कहते हैं ख्वाब में मंत्र दिया होगा 
अब तू ही बता कि मैं  क्या कहूँ 
मुझे तो तेरी पूरी जीवन यात्रा ही शिक्षा देती है 
हारती हूँ जब तो मनोबल सम्भालती  है 
जीतने पर मेरा अहंकार हर लेती है 
तेरा गऊ चराना सीखता है काम कोई छोटा नहीं 
और गोपियों से कर मांगना हक़ के लिये लड़ना सीखता है 
बालपन में दैत्यों को मार कर तूने बताया कि 
शक्ति उम्र नहीं देखती उसे जब चाहो तब पा लो 
और क्या-क्या बताऊँ तू कुछ सब जानता  है 
हे श्याम ! एक यही प्रार्थना है 
मुझे हर पल यूँहिं राह दिखाते रहना 
मेरे जीवन के कुरुक्षेत्र में होने वाले धर्मयुद्ध में 
मुझे अर्जुन की भाँति सम्भाल लेना 
जब-जब विचलित हो मन मेरा 
पाऊँ गीता ज्ञान तेरा 
नाते-रिश्तों  में पड़कर, धर्म-पथ से भटकू ना 
बात न्याय की करते हुए, अपनों-गैरों में अटकू ना 
जो तुझसे शिक्षा पाई है, उस शिक्षा से सरोकार रहे 
पाखंड-झूठ-मक्कारी पर, तेरे नाम का सदा ही वार रहे 
मैं कहीं भी रहूँ, कैसे भी रहूँ, रहूँ रहूँ या ना भी रहूँ 
पर,  मेरी आत्मा पर तेरे प्रेम का सदा  सदा  श्रृंगार रहे 

 ॐ नमो श्री हरि !
ॐ नमो श्री राम कृष्ण हरि !

गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग संस्थान 

Sunday, 25 December 2016

एक प्यारी सी शिकायत अपने प्रीतम श्याम से !


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ॐ नमो श्री हरि !
एक प्यारी सी शिकायत अपने प्रीतम श्याम से ! 

हे श्याम !
तुम तो ऐसे ना थे 
तुम तो नंगे पैर दौड़ पड़ते थे 
भक्तों की खातिर
अब क्या महेंदी लगा बैठे हो 
तुम तो स्वयं मिलने आते थे उनसे 
जो नेकी की राह के राही होते थे 
आज क्या कोई नेकी नहीं करता 
या तू ही अब नेक मानव पैदा नहीं करता 
याद है तू तरसा करता था 
ब्रज की गोपियों के लिए 
क्या वैसा प्रेम अब कोई नहीं करता 
बाबा नामदेव ने जब बालपन में 
निज माँ बाबा की आज्ञा पालन हेतु तोहे पुकारा
तू सच में भोजन करने आया था 
और वचन बद्ध हो तूने सदा नामा की पुकार सुनी थी 
तू ने भोजन की पुकार तो सबकी सुनी थी 
क्या आज कल तोहे भूख नहीं लगती 
और सुनो श्याम प्यारे 
ये जो आप हम से आँख मिचौली खेल रहे हो 
इसमें भी फायदा हमारा ही है 
यदि तुम पकड़े गए तो हम जी भर तुम्हें देखेंगे 
और यदि नहीं पकडे गए तो प्रतीक्षा तुम करोगे हम नहीं 
क्योंकि हम तो बड़े प्रेम से प्रेम करते हैं तुमसे 
और बिन देखे प्रेम करने का आनन्द  तुम भी भूले नहीं हो 
माना श्याम प्यारे तुम दिलबर हो पर दिलदार तो हम हैं
तुम बड़े काम के हो पर तुम्हारे इश्क़ में बेकार तो हम हैं 
ऐसा दुनिया वाले कहते हैं कि तू सबका यार है 
पर यारों के यार के यार तो हम हैं 
तू कुछ ना दे मुझे बस मेरे प्रेम का श्रृंगार बन जा 
अपनी मुरली की धुन मुझे बना ले 
और मेरे सुर की झनकार बन जा 
जय जय श्री राधे ! श्री राधे ! श्री राधे !  

गीता राधेमोहन
प्रेमाभक्ति योग संस्थान दिल्ली  




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ॐ नमो श्री हरि 

हे श्याम !
खामोश हूँ, चुप हूँ
गलत तो नहीं हूँ
असफल हूँ, सफल थोड़ी कम हूँ 
मैं पैसा थोड़ा कम कमाती हूँ
पर गलत तो नहीं हूँ
मैं झूठ नहीं बोल पाती
मैं सच बोलती हूँ
तो क्या मैं गलत हूँ
मुझे भरोसा है तुझ पर
क्या यह खता है मेरी
तुझ पर भरोसा करती हूँ
तो क्या गलत करती हूँ
तेरी दी हुई शिक्षा का अनुशरण करती हूँ
तेरे आदेश का पालन करती हूँ
तो क्या गलत करती हूँ
अन्याय से लड़ना गलत है तो हाँ मैं गलत हूँ
लोगों को बेख़ौफ़ करना गलत है तो हाँ मैं गलत हूँ
खामोश तो तू भी रहता है
तो क्या तू भी गलत है
अब तेरी ख़ामोशी मेरा दम घोटती है
टूटती हुई उम्मीद तेरी ओर देखती है
डूबती हुई मेरी आशा को
केवल तुझ से आस है
यह आस तुझसे करती हूँ
तो क्या गलत हूँ मैं
तो क्या गलत करती हूँ 

ॐ नमो श्री हरि
गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग संस्थान दिल्ली


Tuesday, 20 December 2016

हत्या से बड़ा दोष ?

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एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि किसी की हत्या करने से भी बड़ा दोष क्या है ? यह सुनकर गुरुदेव कुछ समय मौन रहे। उसके बाद गुरुदेव ने एक प्राचीन कथा अपने शिष्य को सुनाई। कि प्राचीन समय में एक राजा था जो बहुत ही धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ था। वह राजा अपनी प्रजा का पालन अपनी संतान के समान करता था। राजा प्रायः दान पुण्य और ब्राह्मण भोज आदि कार्य संपन्न करता रहता था। 

एक बार राजा ने बहुत से ब्राह्मणों को भोज पर आमंत्रित किया। सभी ब्राह्मण भोजन करने यथा समय राजा के महल में पहुँच गए। किन्तु वहाँ एक घटना घटित हुई। जब राजा के रसोइए ने अनेक प्रकार भोजन तैयार किये थे।और जब वह खुले आँगन में खीर बना रहा था। तब ही आकाश में एक चील अपना भोजन (मरा हुआ सांप ) लेकर उड़ रही थी। किसी कारणवश मरा हुआ सांप उसके पंजों से निकल कर खीर के बर्तन में जा गिरा। इस घटना का पता किसी को भी नहीं चला।  राजा ने भोज के लिए आये हुए ब्राह्मणों को भोजन परोस दिया। सभी ब्राह्मणों ने भोजन किया। परन्तु खीर विषैली होने के कारण भोजन करते ही सभी ब्राह्मण मृत्यु को प्राप्त हो गए। 

इस पूरी घटना को धर्मराज यम के सचिव चित्रगुप्त अपने कार्यनुसार देख रहे थे। तब चित्रगुप्त जी ने धर्मराज यम से कहा कि धर्मराज इन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष किस के खाते में लिखूँ। राजा दोषी नहीं क्योंकि खीर विषाक्त है यह बात राजा नहीं जानता था। रसोइया भी इस से परिचित नहीं था। चील अपना भोजन लेकर जा रही थी  उसका भी दोष नहीं है। सांप मृत था। तो हे धर्मराज इन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष किसको लगेगा। यह सुनकर धर्मराज यम ने कहा कुछ समय प्रतीक्षा करो। 

कुछ वर्ष बीते उसी राजा के राज्य में भ्रमण करते हुए कुछ साधु पहुँचे। सभी साधु भूखे और थके हुए थे। और वे सभी भोजन एवं विश्राम की  तलाश में थे। तभी उन साधुओं में से एक साधु बोले कि इस राज्य का राजा बड़ा धर्मात्मा एवं दानी है। वह साधु संतो की बड़ी सेवा करता है। क्यों ना आज चल कर राजा का आतिथ्य प्राप्त करें। सभी साधु राजा के महल जाने के लिए तैयार हो गए। तभी वहाँ एक स्त्री आई जो उन साधुओं  की सभी बातें सुन रही थी। उस स्त्री ने साधुओं से कहा कि क्या तुम नहीं जानते कि राजा ने विषैला भोजन कराकर ब्राह्मणों  को मारा है। राजा अधर्मी और पापी है। उस स्त्री ने राजा के बारे में साधुओं  को बहुत कुछ बुरा बताया। इस पूरी घटना को धर्मराज यम ने देखा और सुना। तब धर्मराज यम ने अपने सचिव चित्रगुप्त को बुलाया और कहा उन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष इस निंदा करने वाली स्त्री के खाते में लिख दो। क्योंकि किसी की हत्या से भी बड़ा दोष किसी के चरित्र की हत्या करना है। 

कथा का सार यह है कि जिस विषय, घटना, व्यक्ति आदि के बारे में आप नहीं जानते उस पर अपनी राय कभी भी ना दें। 
स्रोत अज्ञात 

गीता राधेमोहन 

प्रेमाभक्ति योग दिल्ली 




Sunday, 4 December 2016

ॐ नमो श्री राधे श्याम

वो पूछते हैं हमसे 
हमें प्रेम कितना है 
हम हँस कर कहते हैं 
मापा नहीं कभी 
वो पूछते हैं हमसे 
प्रेम निभाओगे कैसे 
हम हँस कर कहते हैं 
यह भी जाना नहीं कभी 
वो मुस्काकर कहते हैं 
प्रेम पीड़ा का सागर है 
राह में विरह की नदिया 
दुनिया के ताने भी 
तुमको सुनने होंगे 
कांटे बोलो के 
पलकों से चुनने होंगे 
इस असहनीय पीड़ा को 
कहो कैसे सहोगे 
हम हँस कर कहते हैं 
क्या डरा रहे हमको 
ये उल्टी-सीधी पट्टी 
क्या पढ़ा रहे हमको 
हमारे रोम-रोम में श्याम समाया है 
हमने तो राधे श्याम को अपना बनाया है 
मोहन की एक मुस्कान पे 
सौ कष्ट कबूल करते हैं 
बस याद राधे श्याम की 
बाकि सब भूल करते हैं 
यह अहंकार नहीं हमारा 
यह प्यार है प्यारे 
जो हम तुमसे करते हैं 
बस तुमसे करते हैं 
ॐ नमो श्री राधे श्याम 

गीता राधे मोहन 
प्रेमाभक्ति योग दिल्ली

Monday, 28 November 2016

प्रेम-सत्य-धर्म-न्याय


प्रेम-सत्य-धर्म-न्याय 
प्रेम, सत्य, धर्म और न्याय यह चारों शब्द ढ़ाई अक्षर के हैं। यह ढ़ाई अक्षर वाले चार शब्द केवल शब्द नहीं हैं। यह जीवन व्रत हैं।  यह चार शब्द मानव के जीवन को पूर्ण करते हैं। यह चार शब्द मानव को शक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति अपने जीवन में इन चारों शब्दों को पूर्णयता स्वीकार करता है। वही वास्तव  में इस पृथ्वी पर अपने जीवन का उद्देश्य प्राप्त करता है। 

प्रेम, सत्य, धर्म और न्याय इन चारों शब्दों पर चर्चा करना या बहस करना बहुत आसान है। किन्तु इन चारों शब्दों को जीना बहुत ही कठिन हैं। यदि मैं यह कहूँ कि इन चार शब्दों को जीना जप, तप, योग आदि क्रियाओं से भी कठिन है।  तो कोई अतिशोयक्ति नहीं होगी। 

यदि प्रेम, सत्य, धर्म और न्याय इन शब्दों की सार्थकता, कठिनता और पूर्णयता का उदाहरण देखना चाहते हैं। तो रघुकुल नायक, दशरथ नंदन श्री रामचंद्र जी की जीवन गाथा और देवकी नंदन, यशोमति मैया के दुलारे, यादव वंश के सरताज, ब्रजनायक श्री कृष्णचंद्र जी की जीवन गाथा पढ़ें और सुनें। 

जो व्यक्ति प्रेम, सत्य, धर्म और न्याय को अपने जीवन में धारण करता है। त्याग उसके जीवन का अभिन्न अंग बन जाता है। 

गीता राधे मोहन 
प्रेमाभक्ति योग दिल्ली 

मन अपना कार्य पूरी निपुणता से कर रहा है !

ॐ नमो श्री हरि 

ॐ नमो श्री राधे श्याम


राधे राधे जी ! श्री हरि प्रेमियों ,


आप को अपनी सभी समस्याएं भली-भाँति ज्ञात है। किन्तु उपाय आप दूसरों से प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं। आपने लिखा मन विचलित रहता है। मन अपना कार्य पूरी निपुणता से कर रहा है। आप अपना कार्य अपने मन से ज्यादा निपुणता से करो। मन को श्री हरि के चरणों में लगाओ। अपने मन और जिव्हा को श्री हरि का नाम जपने के कार्य में लगा दें। बाकि कार्य श्री हरि स्वयं साध देवेंगे। 

गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग दिल्ली 

Tuesday, 15 November 2016

ऐतिहासिक फैसले पर चन्द पंक्तियाँ

भारतवर्ष में बहुत बरसों बाद लिए गए ऐतिहासिक फैसले पर चन्द पंक्तियाँ 


हर दिन सोचते थे कि 
देश के लिए कुछ करें 
आज वक़्त ने मौका दिया 
चलो ! अपना फ़र्ज़ भी चुकता करें

हक़ ! प्रजा होने का निभा दें 
लिया जो फैसला है, उसने देश के हित में 
वो अकेला नहीं,  हम साथ हैं उसके
बोल ! वन्देमातरम उसको बता दें 

कुछ दिन मेहमान है, यह तकलीफ 
मिटा कर बरसों के रास्ते 
उसने नयी बनाई लीक 
जीवन प्रति क्षण बदलने का नाम है 
श्री कृष्ण ने गीता में भी 
यही सिखाई सीख 

नीम और नमक कड़वे सही 
सेहत और स्वाद की खान है
वक़्त फिर आने वाला है वो
जब पूरा विश्व कहेगा कि 
मेरा भारत महान है मेरा भारत महान है 



Monday, 14 November 2016

प्रेमाभक्ति योग क्या है ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


श्री हरि की कृपा से और अपने बुद्धि विवेक से मैं आप को प्रेमाभक्ति योग के बारे में बताने की चेष्टा कर रही हूँ। यह शब्द प्रेमाभक्ति बहुत छोटा सा है, परन्तु इस शब्द में सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है। इस शब्द की व्याख्या करना गागर में सागर भरने के विचित्र प्रयास के जैसा है। प्रेमाभक्ति योग को समझने के लिए इसको ऐसे लिखते हैं - प्रेम-भक्ति-योग !


आइये पहले योग को समझते हैं। योग का अर्थ जोड़ना / मिलाना होता है। हमारे द्वारा लिखे हुए योग का अर्थ है आत्मा का परमात्मा से जोड़ना / मिलाना आदि। आज जिस योग ( योगा ) की चर्चा चारों ओर हैं। उसको शारीरिक व्यायाम कहते हैं। या हठयोग कहते हैं। 


अब थोड़ा सा भक्ति के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। श्री हरि को पाने के कई तरीक़े हैं। कोई तप- भक्ति से पाने की कोशिश करता है तो कोई जप-भक्ति से, कोई हठ-भक्ति से हरि को पाने का प्रयास करते हैं। भक्ति के भिन्न-भिन्न अनेक रूप हैं। लेकिन श्री हरि ने प्रेम को भक्ति का सबसे श्रेष्ठ रूप बताया है। जब प्रेम और भक्ति मिल जाते हैं तब वह प्रेमाभक्ति योग कहलाता है। इस योग से आत्मा का परमात्मा से मिलन बहुत ही सरलता से हो जाता है। प्रेमाभक्ति का प्रसाद सर्वप्रथम श्री कृष्णचंद्र ने गोकुल की गोपियों द्वारा अपने बड़े भाई श्री उद्धव जी को दिलाया था।  यह प्रसंग ऐसे है कि --




जब कंस ने बाबा नन्द को श्री बलराम और श्री कृष्ण के साथ धनुष यज्ञ देखने के लिए मथुरा बुलाया। तब श्री कृष्ण ने नन्द बाबा और भाई बलराम के साथ मथुरा में आकर कई लीलाएँ की जैसे कुब्जा को सुंदरता प्रदान की, धोबी को मुक्ति दी, दर्जी से वस्त्र सिलवाकर उसकी इच्छा पूरी की, शिव धनुष को तोड़ा, कंस ने द्वार पर एक पागल हाथी बँधवाया था, यह सोचकर कि यह हाथी बलराम और कृष्ण को सभा स्थल पहुँचने से पहले यहीं द्वार पर मार देगा परन्तु बलराम और कृष्ण ने उस हाथी को मुक्ति देकर स्वर्ग भेज दिया। उसके बाद मल्लयुद्ध लीला और फिर कंस वध किया। कंस वध के बाद बाबा नन्द और सभी गोकुलवासी जो उनके साथ मथुरा आये हुए थे वापिस गोकुल लौट गए। श्री कृष्ण और श्री बलराम मथुरा में ही रुक गए। 




यहाँ मथुरा में श्री कृष्ण के रिश्ते के एक बड़े भाई थे, जिनका नाम उद्धव था।  उद्धव जी ब्रह्म ज्ञानी थे। उद्धव जी को अपने ब्रह्म ज्ञानी होने का अहंकार भी था। श्री कृष्ण ने उनके अहंकार को ख़त्म करने और उनको ब्रह्म ज्ञान का मूल समझाने के लिए एक लीला रची । कि एक दिन श्री कृष्ण अपने महल में बैठे रो रहे हैं तभी वहाँ पर उद्धव जी आते हैं और उनसे रोने का कारण पूछते हैं।  श्री कृष्ण कहते हैं कि मुझे ब्रज की याद आ रही है। मुझे अपने सखा और गोपियाँ याद आ रहीं हैं। मुझे राधा जी, मैया यशोदा, बाबा नन्द सभी की याद सता रही है।  मुझ से ब्रज बिसारा नहीं जाता है। इस कारण मेरी आँखें भर आती हैं। यह सुनकर उद्धव जी बोले कि आप साक्षात् ईश्वर हो, ब्रह्म हो यदि आप ही इस प्रकार मोह-माया में उलझोगे तो प्राणी मात्र का क्या होगा। जिसको आप की माया प्रति क्षण ही भ्रमित करती है। श्री कृष्ण कहते हैं कि भैया मैं तो मान जाऊँ परन्तु ब्रज की गोपियाँ मुझे इस प्रकार प्रेम करती हैं कि उनके प्रेम की पुकार मुझे प्रति क्षण बैचेन करती है। मैंने उन्हें कई बार समझाया परन्तु वह मानतीं ही नहीं हैं। श्री कृष्ण ने उद्धव जी से कहा कि आप तो ब्रह्म ज्ञानी हैं। आप गोकुल जा कर गोपियों को ब्रह्म ज्ञान दें जिससे कि वह सब ब्रह्म की आराधना से इस मोह-माया से मुक्त हो जाएँ। श्री कृष्ण ने एक पत्र गोपियों के नाम लिखा। जिसे लेकर उद्धव जी गोकुल पहुँचे। जब गोपियों से उनका वार्तालाप हुआ। तब उनका सारा ब्रह्म ज्ञान धरा का धरा रह गया और गोपियों से प्रेमाभक्ति का प्रसाद पाकर उनका सारा अहंकार भी ख़त्म हो गया। उद्धव जी जब गोकुल आए थे तब वह एक ब्रह्म ज्ञानी थे। परन्तु जब वह वापिस मथुरा लौटे तब वह हरि प्रेमी थे। पहले उद्धव जी ध्यान लगा कर हरि के दर्शन करते थे। प्रेमाभक्ति के बाद हर क्षण हरि से मिलते थे। ध्यान लगाने की आवश्यकता ही नहीं थी। 


प्रेमाभक्ति का एक बहुत ही अनुपम गीत है अवश्य देखें। 



विषय बहुत विस्तृत है। संक्षेप में लिखने से जो बात आप तक पहुँचाना चाहती हूँ, वह असम्भव है। इसलिए कुछ विचार अगले लेख में साझा करुँगी। धन्यवाद !

आप को यह लेख कैसा लगा। कृपा ज़रूर बताएं। संपर्क सूत्र निम्न हैं। 

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Saturday, 5 November 2016

हम इस संसार में किस लिए आये हैं ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


9 अक्टूबर 2016 के लेख का तीसरा सवाल है कि हम इस संसार में किस लिए आये हैं ?


दोस्तों, क्या आप ने कभी सोचा है कि हम इस संसार में किस लिए आये हैं ? जो हम करते हैं। क्या वाक़ई हम वही करने के लिए आये हैं। क्या उस ईश्वर ने हम को अन्य जीव-जंतुओं जैसा ही बनाया है या उन सबसे भिन्न बनाया है। 

यदि आप यह मानते हैं कि ईश्वर ने आपको अन्य जीव-जंतुओं जैसा ही बनाया है तो आप जो कर रहे हैं। वही आप के लिए उचित है। लेकिन, यदि आप यह मानते हैं कि ईश्वर ने आप को अन्य जीव-जंतुओं से भिन्न बनाया है तो आप का कर्म भी अन्य जीव-जंतुओं से भिन्न होगा। आज लगभग सभी व्यक्ति अपने बारे में ही सोचते समझते हैं। जिसका समाज पर बहुत बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा है। 

ईश्वर ने इस पूरी दुनिया को बनाया और हमारे सुपुर्द  कर दिया। उसने हमारे हृदय में प्रेम, दया, करुणा का रस भरा। उसने हमारे लिए नेकी और भलाई की राह बनाई। उसने हम को एक दूसरे का भला करने का कार्य दिया। उसने हमको बल-बुद्धि-विवेक दिया। उसने अपनी ख़ूबसूरत दुनिया हमारे हवाले कर दी। 

लेकिन हम ने क्या किया ? क्या है, हमारा व्यवहार एक-दूजे के प्रति ? हम ने अपने हृदय से प्रेम, दया, करुणा निकाल  कर  ईर्ष्या,घृणा, नफ़रत का ज़हर भर लिया। हम ने भलाई और नेकी की राह  को छोड़ कर नफ़रत और बुराई के रास्ते पकड़ लिए। एक-दूजे का भला भूल गए बस याद रहा तो अपना लाभ। ईश्वर की दी हुईं तीन अनुपम शक्तियाँ  बल-बुद्धि-विवेक का उपयोग तो हमने बहुत ही अजीब तरीक़े से किया है। 

-: बल-बुद्धि-विवेक :-


बल- ईश्वर ने बल दिया कमज़ोरों की मदद के लिए, अन्याय को रोकने के लिए , समाज भलाई के लिए।  


बुद्धि- ईश्वर ने बुद्धि नीतिवान, ज्ञानवान, दयावान, विद्वान बनने के     लिए दी। 


विवेक- ईश्वर ने विवेक हमको धर्म और नीति की राह पर चलने के     लिए दिया 


हम ने जिस प्रकार इन तीनों शक्तियों का दुरुपयोग किया है। उसको बताने के लिए मुझे शब्दों की ज़रूरत नहीं है। वह आप सब प्रत्यक्ष ही देख सकते हैं। 


विषय बहुत विस्तृत है। संक्षेप में लिखने से जो बात आप तक पहुँचाना चाहती हूँ, वह असम्भव है। इसलिए कुछ विचार अगले लेख में साझा करुँगी। धन्यवाद !

आप को यह लेख कैसा लगा। कृपा ज़रूर बताएं। संपर्क सूत्र निम्न हैं। 

whatsApp - 9643581002 
Email- premabhaktiyog@gmail.com 

Friday, 4 November 2016

शब्द क्या है ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :-

28 अक्टूबर 2016 के लेख का अंश 

सवाल :- शब्द क्या है ?
जवाब :- शब्द माता-पिता है। शब्द प्रेम है। शब्द ईश्वर है। शब्द जीवन है। शब्द ज्ञान है। शब्द वैराग्य है। शब्द संसार है। शब्द मेल है। हम सब से पहले शब्द से मिलते हैं। शब्द ही हमको सब कुछ सीखता है। शब्द ही हमारा मार्ग दर्शन करता है। शब्द ही हमको सच्ची पहचान दिलाता है। शब्द से ही यह संसार है। अब आगे 

मानव जब शिशु रूप इस पृथ्वी पर आता है। तब वह कुछ क्रियाएं जानता है या प्रभु उससे कराते  हैं। रुदन करना, शयन करना,भूख का अहसास करना,मल-मूत्र की क्रिया करना। किन्तु एक क्रिया परिवार वाले करते हैं जो नामकरण संस्कार क्रिया कहलाती है। इस क्रिया में शिशु को एक नाम दिया जाता है। जो उसके जीवन का पहला शब्द होता है। जो उसकी प्रथम पहचान बनता है। धीरे-धीरे जब वह बड़ा होता है तब उसकी क्रियाएं भी बढ़ने लगती हैं। हँसना सीखता है। चलना सीखता है। और इन क्रियाओं में एक क्रिया होती है बोलना। 


जब शिशु बोलना सीखता है तब उसका परिचय शब्द से या शब्दों से होता है। शब्द ही उसको ज्ञान देते हैं। जैसे माँ कौन है ? घर में दो-चार स्त्री, पुरुष होते ही हैं किन्तु सभी की पहचान अलग होती है। वो पहचान शब्द कराते हैं। इस प्रकार शिशु अक्षर ज्ञान से पहले शब्द ज्ञान प्राप्त करता है। 


अक्षर ज्ञान से शब्दों की पहचान होती है। किन्तु अक्षर हमको पूर्ण ज्ञान देने में सक्षम नहीं होते हैं। अक्षर-अक्षर के योग से शब्द, शब्द-शब्द के योग से वाक्य, वाक्य-वाक्य के योग से पुस्तक, ग्रन्थ आदि जन्म होता है। किन्तु शब्द ज्ञान के लिए अक्षर ज्ञान होना आवश्यक नहीं है। शब्द ज्ञान हम स्वतः ही सीखते हैं क्योंकि यह ज्ञान हमको हमारे परिवेश से मिलता है। परंतु लेखन के लिए अक्षर ज्ञान होना अति आवश्यक है। 

यदि हम चाहते कि हमारी पीढ़ी को एक अच्छा परिवेश मिले तो हमको अपने शब्दों को सही और संतुलित करना होगा। आज हमारे शब्द बहुत ही असंतुलित हो चुके हैं। असंतुलित शब्द ही आज के बढ़ते हुए लड़ाई-झगड़े का कारण बनते हैं। शब्दों का खेल बहुत ही अनोखा होता है। मुख से निकले मीठे शब्द आपको सबका प्यारा बनाते हैं।  और कड़वे शब्द लड़ाई-झगड़े व दुश्मनी का कारण बनते हैं। अतः इसलिए महाकवि कबीर दास जी ने भी कहा है। 

ऐसी बानी बोलिए मनका आपा खोय। 
औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय।।




शब्द के बारे में और चर्चा अगले लेख में करेंगे धन्यवाद 




यदि कोई सवाल आप को परेशान करता है। तो जरूर लिखें ईश्वर की कृपा से आपको उसका जवाब अवश्य मिलेगा। अपना सवाल हमें इस Mail id पर भेजें या whats app करें। 
premabhaktiyog@gmail.com 

9643581002 

Friday, 28 October 2016

सवाल :- हम को क्या चाहिये ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


दोस्तों, 9 अक्टूबर 2016 के लेख  स्वयं को जानो के दूसरे सवाल का जवाब तलाश करते हैं। इस लेख का दूसरा सवाल है कि हम को क्या चाहिये ?

आज सभी व्यक्ति अंकों के पीछे दौड़ रहे हैं। कभी घड़ी में समय बताने वाले अंक हमको दौड़ाते हैं तो कभी परीक्षा के अंक दौड़ाते हैं। कभी वेतन के अंक दौड़ाते हैं। और भी ना  जाने कैसे-कैसे अंक हैं। जो हमको दिन रात दौड़ाते हैं। और हम दौड़ भी रहे हैं।  बिना ये सोचे कि क्या वाक़ई हमको दौड़ना है। क्या वाक़ई हमको इस दौड़ की आवश्यकता है या नहीं। मैं जानती हूँ कि आपको मेरी बातें अटपटी लग रही हैं। किन्तु ये सच है कि हम आज अंकों की अन्धी दौड में शामिल हैं।


दोस्तों, जिंदगी शब्दों से बनती है अंकों से नहीं। अंक कितने ही हासिल हो जाये जब तक शब्द उनको नहीं सहारते सब बेकार हैं। हमको अंकों की जितनी आवश्यकता है उससे कहीं ज़्यादा शब्दों की ज़रूरत है। किताबी कीड़ा बनकर 100/100 पाने से अच्छा, अपने ज्ञान से प्राप्त किये गए अंक होते हैं। क्योंकि हम जीवन में तब ही आगे बढ़ सकते हैं जब हम अध्ययन के साथ मनन भी करते हैं। यदि हम सिर्फ पढ़े हैं तो हम एक मशीन के जैसे हैं। यदि हम गुने हुए हैं तो हम इंसान हैं। आप सभी इंसानों और मशीनों में तो अंतर भली-भाँति समझते होंगे। 

सवाल :- हमको क्या चाहिये ?
जवाब :- हमको शब्द चाहिये। जिससे हम बेहतर इंसान बन सकें। हम बेहतर ढंग से अपने जीवन को जी सकें। हम एक बेहतर समाज-देश-दुनिया का निर्माण का सकें। 

सवाल :- शब्द क्या है ?
जवाब :- शब्द माता-पिता है। शब्द प्रेम है। शब्द ईश्वर है। शब्द जीवन है। शब्द ज्ञान है। शब्द वैराग्य है। शब्द संसार है। शब्द मेल है। हम सब से पहले शब्द से मिलते हैं। शब्द ही हमको सब कुछ सीखता है। शब्द ही हमारा मार्ग दर्शन करता है। शब्द ही हमको सच्ची पहचान दिलाता है। शब्द से ही यह संसार है। 

शब्द के बारे में और चर्चा अगले लेख में करेंगे धन्यवाद 


यदि कोई सवाल आप को परेशान करता है। तो जरूर लिखें ईश्वर की कृपा से आपको उसका जवाब अवश्य मिलेगा। अपना सवाल हमें इस Mail id पर भेजें या whats app करें। 
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9643581002 

Sunday, 23 October 2016

सवाल :- हम कौन हैं ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


दोस्तों पिछले लेख में मैंने कुछ सवाल पूछे थे। क्या किसी को भी कोई जवाब नहीं मिला ? चलो मिलकर पहले सवाल का जवाब ढूढ़ते हैं। पहला सवाल है कि हम कौन हैं ?

उस ईश्वर, अल्लाह, गॉड या कोई भी अन्य नाम जिससे आप उसको पुकारते हो। उसने इस सृष्टि, दुनिया, वर्ल्ड (या कोई भी अन्य नाम जो भी आप कहते है) को बनाया। उसने इंसान  बनाया। उसने इंसान को बल-बुद्धि-विवेक दिया। जिससे इंसान सही-गलत का अंतर जान सके। बुरे-भले को पहचान सके। परन्तु इंसान ने अपने बल-बुद्धि-विवेक का उपयोग हमेशा गलत दिशा में किया। जिसके कारण वह हमेशा परेशानियों में घिरा रहता है। कुछ उदाहरण लिख रही हूँ। जिससे आप समझ जाएँ कि सही दिशा क्या है। क्या होना चाहिये और आज क्या हो रहा है। 

धर्म को धारण करना चाहिये अर्थात धर्म निभाना चाहिये।  

जैसे माता-पिता का धर्म है संतान का उत्तम पालन-पोषण, संतान को उच्च संस्कार देना।     संतान को सही राह दिखाना। 

गुरुजनों, शिक्षकों, विद्वान आदि का धर्म है। सभी को उत्तम ज्ञान देना। सही- गलत का       अंतर स्तिथि-परिस्तिथि का अनुरूप बताना। यह नहीं कि बस एक बार लिख दिया की फला कार्य सही है और फला कार्य गलत है। यह भी बताना जरुरी है कि वह कार्य क्यों गलत है और क्यों सही है ? जिस तरह एक समय में एक व्यक्ति किसी के लिए सबसे अच्छा होता है एवं किसी के लिए सबसे बुरा होता है। उसी तरह स्तिथि-परिस्तिथि पर निर्भर होता है कि कब एक ही कार्य सही है और कब वही कार्य गलत है। 

राजा का धर्म अपनी प्रजा का उत्तम पालन करना। प्रजा की रक्षा करना। अपराधियों को उचित दंड देना सीमाओं की रक्षा करना। 

इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का अपना धर्म होता है कि वह अपने बल-बुद्धि-विवेक का उपयोग निजी हित के लिए न करके उसका उपयोग समाज-देश-विश्व कल्याण एवं उन्नति के लिए करे। जिससे समस्त मानव जाति के साथ-साथ सम्पूर्ण सृष्टि ख़ुशहाल रहे। 

परन्तु आज सिर्फ धर्म की चर्चा है। धर्म कहीं नहीं है। धर्म की पहचान हमारे पहनावे,वेश-भूषा, देश और भाषा से होती है। आज वेश-भूषा, भाषा और देश के आधार पर ही धर्म बनें हैं और अनेकों शाखाएँ दिन-प्रतिदिन विकसित हो रही हैं। 

सवाल :-  हम कौन हैं ?
जवाब :-  हम इंसान हैं। हम ईश्वर की सबसे प्यारी रचना हैं। 
सवाल :-  हमारा धर्म क्या है ?
जवाब :- धर्म की परिभाषा बहुत विशाल है।  धर्म जिया जाता है। धर्म धारण किया जाता है। हमारा धर्म हमारी आयु-कार्य-रिश्ते स्तिथि के अनुरूप होता है। जिस तरह एक समय में हम एक साथ कई रिश्ते निभाते हैं। उसी तरह आयु-कार्य-रिश्ते और स्तिथि पर निर्भर हम अपना धर्म निभाते हैं। 


क्रमशः 


यदि कोई सवाल आप को परेशान करता है। तो जरूर लिखें ईश्वर की कृपा से आपको उसका जवाब अवश्य मिलेगा। अपना सवाल हमें इस Mail id पर भेजें या whats app करें। 

premabhaktiyog@gmail.com 

9643581002 


Sunday, 9 October 2016

स्वयं को जानो

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


हम सब इस संसार में आने के बाद सब कुछ जानते हैं। सब कुछ समझते हैं। हर बात का ज्ञान अर्जित  लेते है। इतना ज्ञान कर लेते है कि कभी-कभी यही ज्ञान हमारा दुश्मन बन जाता है। कुछ लोग अपनी सामर्थ्य से ज्यादा ज्ञान अर्जित कर लेते हैं। जिसके फलस्वरूप वो प्रत्येक कार्य का क्या परिणाम होगा। अच्छा होगा या बुरा होगा पहले ही बता देते हैं। अपने इसी ज्ञान के कारण यह लोग कभी-कभी पागल भी हो जाते हैं। 


यह संसार और इस संसार का ज्ञान, हमको हमेशा दूसरों के बारे में ज्ञान देता है। कभी यह नहीं बताता है कि  
हम कौन हैं ? 
हम को क्या चाहिये ? 
हम इस संसार में किस लिये आये हैं ?
हमारे कर्तव्य क्या हैं ? 
क्या हम मशीन हैं ? 
क्या ईश्वर ने हमको अंको के पीछे दौड़ने के लिये इस संसार में भेजा है ? 
जिस तरह से हम अपना जीवन जी रहे हैं। क्या यह उत्तम है ?
क्या इस जीवन को और उत्तम बनाया जा सकता है ? 

ऐसे बहुत से सवाल मन के अंदर बैठे हुए हैं। जिनका जवाब तलाशना अभी भी बाकि है। इन सभी सवालों का जवाब तभी मिलेगा। जब हम आत्म चिंतन के द्वारा अपने आप से मिलेंगे। स्वयं से मिलना बहुत ही आसान है। बस रास्ता पता होना चाहिये। रास्ता कौन बतायेगा ? रास्ता स्वयं ही पता चल जायेगा। बस आप स्वयं को स्वयं के लिये समय दो। 


जब सारे कार्य समाप्त करके सोने की तैयारी करो। तब सोने से पहले अपनी पूरे दिन की दिनचर्या को याद करो कि आप ने सारा दिन क्या किया ?  क्यों किया ? जो भी किया उसमें आप कहाँ थे ? फिर इस बात को याद करना की जो तुमने किया।  क्या वो सब करने के लिए ही श्री हरि  ने हमको यह जीवन दिया है ? इस  तरह प्रतिदिन करना। श्री हरि की कृपा से जल्दी ही आप की मुलाक़ात स्वयं से होगी। 


ऊपर जो सवाल लिखें  हैं उनका जवाब श्री हरि की कृपा से आपको जल्दी ही मिल जाये। 


 -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 

कोई बात जो आपको परेशान करती हो। कोई सवाल कि ऐसा मेरे साथ ही क्यूँ होता है ? आप की सभी परेशानियाँ आप स्वयं ही दूर कर सकते हो कोई और नहीं कर पायेगा। अपनी समस्या हमको लिखें। उसको दूर करने का रास्ता हम आप को बतायेंगे। 

कॉल / whatsApp करें - 9643581002 

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Saturday, 8 October 2016

आओ, प्रेमाभक्ति करें !


आगे आगे भगवान, पीछे पीछे भक्त, यह होती है पूजा-भक्ति। 
जो इस क्रिया को उल्टा करदे, उसको कहते हैं प्रेमाभक्ति।। 

श्री हरि के प्यारों,                                                                              आप श्री हरि  के जिस रूप की भी पूजा-अर्चना करते हो। अब उससे प्रेम करना शुरू कर दो। जब आप श्री हरि की पूजा-भक्ति करते हो तब आप उस हरि  को कभी-कभी, कहीं-कहीं अनुभव करते हो और जब आप उस हरि की प्रेमाभक्ति करते हो तब वह प्रत्येक क्षण आपके पास रहता है।         इस संसार की प्रत्येक पूजा से बड़ी, हर तरह के ज्ञान से बढ़कर, बिना किसी झंझट के, बिना किसी दिखावे के बस बड़े ही आराम से आप प्रेमाभक्ति योग को साध सकते हो। ना कोई मंत्र, ना कोई तंत्र, ना कोई यन्त्र बस प्रेम के बल से प्रेम की राह पे धीरे-धीरे एक एक कदम बढ़ाते हुए प्रेमाभक्ति की डगर पर बिना किसी डर के चल पड़ो। श्री हरि  को पाने का सबसे सहज तरीका है प्रेमाभक्ति का मार्ग।                                     प्राचीन काल से अब तक जिस-जिस ने प्रेमाभक्ति की राह  पकड़ी है। वो सभी भक्त श्री हरि के अत्यंत ही प्यारे रहे हैं। आदिकवि महाऋषि वाल्मीक जी को जब सप्त ऋषियों द्वारा श्री राम की प्रेमाभक्ति प्रदान की गयी। तब उनको राम शब्द का उल्टा मरा मरा जाप बताया था। राम का उल्टा  मरा मरा जपने से राम राम का जप हुआ और आदिकवि महाऋषि वाल्मीक जी ने श्री राम कथा रामायण को लिखा। 


प्रेमाभक्ति योग बड़ा ही सहज है। प्रेमाभक्ति के बारे में और चर्चा अगले अंक में करेंगे। 


जय श्री राधे श्याम जय श्री सीता राम 

गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग 

Saturday, 10 September 2016

श्री राधे श्याम का ख़त

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मेरे प्यारों, 

                तुम सब ने मेरा अभिनन्दन स्वीकार किया उसका बहुत-बहुत धन्यवाद !




मैंने अपने पहले पत्र में कहा था कि मैं  हर पल  हर समय इस पूरे ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में विद्यमान हूँ। अब आगे...... 

               मुझे दुःख होता है जब कोई तुम को मेरे नाम से धोखा देता है या तुम किसी को मेरे नाम से धोखा देते हो। मैंने इस ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु तुम्हारे लिए बनाई है। चाहे वो सौर मण्डल में घूमते हुए ग्रह हों या पृथ्वी पर बहती नदिया, हरे भरे पेड़, पहाड़ सब कुछ तुम्हारे लिए हैं छोटी से छोटी वस्तु से लेकर बड़ी से बड़ी हर वस्तु तुम्हारे लिए है। 


                यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम इन सभी वस्तुओं का प्रयोग किस प्रकार करते हो। मेरे इस ब्रह्माण्ड में जितनी भी, जो भी चीजें तुम देखते हो वो सभी जितनी लाभकारी हैं, उतनी ही विनाशकारी हैं। यदि तुम इन सभी का प्रयोग जन कल्याण, समाज कल्याण, विश्व कल्याण के लिए करोगे तो तुम हमेशा इस संसार की सभी सुख सुविधाओं को सरलता से प्राप्त कर पाओगे।  यदि तुम विनाश के लिए इनका प्रयोग करोगे तो स्वयं के साथ जन,समाज,विश्व का भी पतन करोगे। 


                 एक बात और कहनी है कि  ये नौ ग्रह मैंने तुम्हारे पीछे नहीं  लगाएं हैं।  यह सब नक्षत्र, ग्रह आदि मेरी सृष्टि का हिस्सा हैं। यह सब अपना काम करते हैं तुम को इनसे डरने की जरुरत नहीं है। ना मैं तुम को सजा देता हूँ और ना ही कोई दूसरा तुमको सजा देता है।  तुम खुद अपने को सजा देते हो। मेरी सृष्टि का यही नियम है कि यहाँ तुम सब कुछ स्वयं करते हो। और जब तुम खुद स्वयं को सजा देते हो तो कोई क्या कर सकता है। अब तुम स्वयं के लिए अच्छा चुनते हो या बुरा चुनते हो ये तुम पर ही निर्भर करता है। 


      सृष्टि के कुछ और नियम अपने अगले खत में खोलूँगा........  



     

Friday, 9 September 2016

श्री राधे श्याम का ख़त

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मेरे प्यारों,

                मैं तुम सब का अपने श्री राधे श्याम परिवार में स्वागत करता हूँ 


                तुम्हें मुझ से सदैव कोई ना कोई शिकायत रहती है। मैं  तुम्हारी शिकायतों को सही भी मानता हूँ परन्तु मुझे भी तुम सबसे एक शिकायत है। तुम सब मुझको जानते तो हो पर मानते नहीं हो। तुम सब मुझ पर या तो विश्वास करते नहीं  हो या करते हो तो आधा विश्वास ही करते हो। 

मैं प्रत्येक क्षण इस उम्मीद से तुम्हारी राह देखता हूँ कि किस पल तुम मुझको सच्चे हृदय से पूरे विश्वास के साथ पुकारो और मैं उसी क्षण तुम्हारे सारे दुःख, दर्द, तक़लीफ़, परेशानियाँ समाप्त करके तुम्हें अपनी सृष्टि की तमाम सुख सुविधा प्रदान कर दूँ परन्तु तुम सब कभी ये अवसर मुझे देते ही नहीं हो। 

मैं ने यह बात तुम से कहने के लिए हमेशा की तरह तुम में से ही किसी एक को चुना हैं। मैं हमेशा तुम में से ही माध्यम चुनता हूँ। युग कोई भी मैं हमेशा हर समय, हर जगह पर मौजूद हूँ।  मैं तुमसे ना कल दूर था और ना ही आज दूर हूँ।  तुम सब मेरे अंदर ही वास करते हो और मैं तुम सब के अंदर रहता हूँ।  परंतु इस सत्य को तुम स्वीकार नहीं करते हो।  

बाकी बातें अगले ख़त में ......