Saturday 25 March 2017

!! ॐ नमो श्री हरि !!

पूजा का विधि-विधान जितना सादा होता है। श्रद्धा और विश्वास उतना ही दृढ़ होता है। यदि आप पूजा विधि को आवश्यकता से अधिक जटिल एवं कठिन बना लेते हो तो आप बस पूजा की विधि में अटक जाते हो और श्रद्धा उत्पन्न नहीं हो पाती। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि 

ईश्वर आपके भाव का भूखा है, ना कि आप के भोग का।
 ईश्वर की पूजा हृदय के भाव से करो, जेब के भार से नहीं 
  

Sunday 19 March 2017

ध्यान क्या है ?

!!ॐ नमो श्री हरि!!

आप सभी को सप्रेम राधे राधे जी !अध्यात्म के मार्ग में ध्यान का बहुत महत्व है। परंतु ध्यान लगाएं कैसे ? ध्यान का सबसे बड़ा दुश्मन मन है। बहुत से लोग प्रतिदिन घण्टों आँखे बंद करके ध्यान मुद्रा में बैठे रहते हैं। लेकिन परिणाम कुछ नहीं आता है। तो सबसे पहले यह जान लें कि ध्यान क्या है ?

ध्यान के लिए आँखें बंद करके बैठना आवश्यक नहीं है। ध्यान प्रतिपल लगाया जा सकता है। ध्यान के लिए लगन होनी आवश्यक है और लगन  उसी से लगती है जिसको हम प्रेम करते हैं। यदि आपको श्री हरि से प्रेम हो तो आप प्रत्येक अवस्था में प्रतिपल ध्यान लगा सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे माँ अपने बच्चे के ध्यान में मगन रहती है। प्रेमी अपने प्रेमी या प्रेमिका के ध्यान में रहता है। ध्यान का आरम्भ प्रेम से होकर, चिंतन से विचरकर समाधि तक पहुँचना होता है। यदि आप सीधे समाधि में ध्यान लगाने की कोशिश करते हैं तो आप बिना सीढ़ी के सीधे छत पर जाने का प्रयास कर रहे हैं। तो पहले श्री हरि से प्रेम करो ध्यान तक स्वयं ही पहुँच जाओगे। श्री हरि की प्राप्ति के लिए पहला व सहज मार्ग या पहली सीढ़ी प्रेम है। 

जो भक्तजन  प्रेमाभक्ति का मार्ग चुनते हैं। उनसे श्री हरि स्वयं  मिलने आते हैं। श्री हरि अपने प्रेमीजनों से पलभर का विरह भी  नहीं  सह  पाते हैं। यह त्रुटि हमारी है कि हम ऐसे हरि को छोड़ दुनिया से नेहा लगाते हैं और दुःख सहते हैं। ब्रज की गोपियों ने श्री हरि को प्रेम से ही पाया था। गोपियाँ श्री हरि के प्रेम में रह कर प्रत्येक अवस्था में प्रतिपल श्री हरि का ध्यान करतीं थीं। तो फिर हम क्यों योगियों वाले ध्यान में फँसकर, गोपियों वाले ध्यान से भटक रहे हैं। जय जय श्री राधे राधे !

गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग संस्थान 

Saturday 18 March 2017

श्री हरि से प्रेम क्यों करें ?

!!ॐ नमो श्री हरि!!

प्रेम इस सम्पूर्ण विश्व की प्रथम आवश्यकता है। इस विश्व का सार प्रेम ही है। प्रेम के बिना विश्व की कल्पना निरर्थक है। परन्तु आज के समय में मोह को प्रेम समझा जा रहा है।  प्रेम और मोह के मध्य बाल से भी पतली रेखा होती है। इसी कारण प्रेम और मोह में भेद करना थोड़ा सा जटिल होता है। प्रेम खुला गगन है और मोह बंधन है। प्रेम त्याग का पथ है और मोह प्राप्त करने की ललक है। प्रेम मानव को श्रेष्ठ बनाता है और मोह मानव को भ्रष्ट बना देता है। आज आपको प्रत्येक आयु वर्ग के बहुत से व्यक्ति प्रेम का दावा करते मिल जायेंगे कि अमूक व्यक्ति के बिना हम नहीं रह सकते आदि-आदि परन्तु यह प्रेम नहीं है। प्रेम में कोई दावा नहीं होता।  प्रेम वो धागा है जिसमें श्री हरि ने इस सम्पूर्ण विश्व को पिरोया हुआ है। इस विश्व में सबसे श्रेष्ठ प्रेम श्री हरि का प्रेम है। जब हम श्री हरि से प्रेम करते हैं तो हमको इस विश्व की प्रत्येक कण से प्रेम होना शुरू हो जाता है। इसको ऐसे समझते हैं कि जब हम किसी व्यक्ति से प्रेम करते हैं तो उससे जुड़ी सारे रिश्ते-नाते-बातें हमको अच्छी लगती हैं। क्योंकि हमको उस व्यक्ति से जुड़ी सभी बातें उसके होने का एहसास कराती हैं। फिर यह सम्पूर्ण विश्व तो श्री हरि का ही है। इसलिए जब हम श्री हरि से प्रेम करते हैं तो हमको सम्पूर्ण विश्व से प्रेम हो जाता है। और जहाँ  प्रेम होता है, वहाँ सुख-शांति-समृद्धि का स्थाई वास होता है। और आज विश्व को इसी प्रेम की आवश्यकता है। श्री हरि से प्रेम करने के लिए आपको मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा आदि कहीं भी नहीं जाना है। बस आपको अपने हृदय मंदिर से काम-क्रोध-लोभ-मोह इन चार दोस्तों की चौकड़ी को भगाना है। और वहाँ श्री हरि को बैठाकर श्री हरि से प्रेम करना है। बस एक बार प्रेम श्री हरि से प्रेम करके देखो तो सही जीवन का प्रतिपल सुखों की खान बन जाएगा। श्री हरि के प्रेम की महिमा को गाना या बताना मेरी सक्षमता में नहीं समाता यह तो थोड़ा सा अनुभव जो श्री हरि की कृपा से मुझ मिला है। श्री हरि की आज्ञा से आप लोगों के साथ साझा किया है। अब आप कहो की श्री हरि से प्रेम क्यों ना करें ? आओ श्री हरि से प्रेम कर जीवन अपना संवार लें। 
जय जय श्री राधे राधे                  जय जय श्री राधे राधे                           जय जय श्री राधे राधे 

गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग संस्थान