प्रेमाभक्ति योग - ईश्वर से प्रेम करना ही प्रेमाभक्ति है। प्राचीन समय में पह्लाद से लेकर वर्तमान तक जिसने भी ईश्वर से विशुद्ध प्रेम किया है। उसने सहज ही में ईश्वर को प्राप्त किया है। प्रेमाभक्ति ईश्वर को पाने का सरल और सहज रास्ता है। इस पर चलने के लिए सिर्फ़ एक ही शर्त है कि आप को विशुद्ध प्रेम करना आना चाहिए। You can get perfect solution to your any problem From Premabhakti Yog.
Saturday 18 March 2017
श्री हरि से प्रेम क्यों करें ?
प्रेम इस सम्पूर्ण विश्व की प्रथम आवश्यकता है। इस विश्व का सार प्रेम ही है। प्रेम के बिना विश्व की कल्पना निरर्थक है। परन्तु आज के समय में मोह को प्रेम समझा जा रहा है। प्रेम और मोह के मध्य बाल से भी पतली रेखा होती है। इसी कारण प्रेम और मोह में भेद करना थोड़ा सा जटिल होता है। प्रेम खुला गगन है और मोह बंधन है। प्रेम त्याग का पथ है और मोह प्राप्त करने की ललक है। प्रेम मानव को श्रेष्ठ बनाता है और मोह मानव को भ्रष्ट बना देता है। आज आपको प्रत्येक आयु वर्ग के बहुत से व्यक्ति प्रेम का दावा करते मिल जायेंगे कि अमूक व्यक्ति के बिना हम नहीं रह सकते आदि-आदि परन्तु यह प्रेम नहीं है। प्रेम में कोई दावा नहीं होता। प्रेम वो धागा है जिसमें श्री हरि ने इस सम्पूर्ण विश्व को पिरोया हुआ है। इस विश्व में सबसे श्रेष्ठ प्रेम श्री हरि का प्रेम है। जब हम श्री हरि से प्रेम करते हैं तो हमको इस विश्व की प्रत्येक कण से प्रेम होना शुरू हो जाता है। इसको ऐसे समझते हैं कि जब हम किसी व्यक्ति से प्रेम करते हैं तो उससे जुड़ी सारे रिश्ते-नाते-बातें हमको अच्छी लगती हैं। क्योंकि हमको उस व्यक्ति से जुड़ी सभी बातें उसके होने का एहसास कराती हैं। फिर यह सम्पूर्ण विश्व तो श्री हरि का ही है। इसलिए जब हम श्री हरि से प्रेम करते हैं तो हमको सम्पूर्ण विश्व से प्रेम हो जाता है। और जहाँ प्रेम होता है, वहाँ सुख-शांति-समृद्धि का स्थाई वास होता है। और आज विश्व को इसी प्रेम की आवश्यकता है। श्री हरि से प्रेम करने के लिए आपको मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर-गुरुद्वारा आदि कहीं भी नहीं जाना है। बस आपको अपने हृदय मंदिर से काम-क्रोध-लोभ-मोह इन चार दोस्तों की चौकड़ी को भगाना है। और वहाँ श्री हरि को बैठाकर श्री हरि से प्रेम करना है। बस एक बार प्रेम श्री हरि से प्रेम करके देखो तो सही जीवन का प्रतिपल सुखों की खान बन जाएगा। श्री हरि के प्रेम की महिमा को गाना या बताना मेरी सक्षमता में नहीं समाता यह तो थोड़ा सा अनुभव जो श्री हरि की कृपा से मुझ मिला है। श्री हरि की आज्ञा से आप लोगों के साथ साझा किया है। अब आप कहो की श्री हरि से प्रेम क्यों ना करें ? आओ श्री हरि से प्रेम कर जीवन अपना संवार लें।
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