Friday 28 October 2016

सवाल :- हम को क्या चाहिये ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


दोस्तों, 9 अक्टूबर 2016 के लेख  स्वयं को जानो के दूसरे सवाल का जवाब तलाश करते हैं। इस लेख का दूसरा सवाल है कि हम को क्या चाहिये ?

आज सभी व्यक्ति अंकों के पीछे दौड़ रहे हैं। कभी घड़ी में समय बताने वाले अंक हमको दौड़ाते हैं तो कभी परीक्षा के अंक दौड़ाते हैं। कभी वेतन के अंक दौड़ाते हैं। और भी ना  जाने कैसे-कैसे अंक हैं। जो हमको दिन रात दौड़ाते हैं। और हम दौड़ भी रहे हैं।  बिना ये सोचे कि क्या वाक़ई हमको दौड़ना है। क्या वाक़ई हमको इस दौड़ की आवश्यकता है या नहीं। मैं जानती हूँ कि आपको मेरी बातें अटपटी लग रही हैं। किन्तु ये सच है कि हम आज अंकों की अन्धी दौड में शामिल हैं।


दोस्तों, जिंदगी शब्दों से बनती है अंकों से नहीं। अंक कितने ही हासिल हो जाये जब तक शब्द उनको नहीं सहारते सब बेकार हैं। हमको अंकों की जितनी आवश्यकता है उससे कहीं ज़्यादा शब्दों की ज़रूरत है। किताबी कीड़ा बनकर 100/100 पाने से अच्छा, अपने ज्ञान से प्राप्त किये गए अंक होते हैं। क्योंकि हम जीवन में तब ही आगे बढ़ सकते हैं जब हम अध्ययन के साथ मनन भी करते हैं। यदि हम सिर्फ पढ़े हैं तो हम एक मशीन के जैसे हैं। यदि हम गुने हुए हैं तो हम इंसान हैं। आप सभी इंसानों और मशीनों में तो अंतर भली-भाँति समझते होंगे। 

सवाल :- हमको क्या चाहिये ?
जवाब :- हमको शब्द चाहिये। जिससे हम बेहतर इंसान बन सकें। हम बेहतर ढंग से अपने जीवन को जी सकें। हम एक बेहतर समाज-देश-दुनिया का निर्माण का सकें। 

सवाल :- शब्द क्या है ?
जवाब :- शब्द माता-पिता है। शब्द प्रेम है। शब्द ईश्वर है। शब्द जीवन है। शब्द ज्ञान है। शब्द वैराग्य है। शब्द संसार है। शब्द मेल है। हम सब से पहले शब्द से मिलते हैं। शब्द ही हमको सब कुछ सीखता है। शब्द ही हमारा मार्ग दर्शन करता है। शब्द ही हमको सच्ची पहचान दिलाता है। शब्द से ही यह संसार है। 

शब्द के बारे में और चर्चा अगले लेख में करेंगे धन्यवाद 


यदि कोई सवाल आप को परेशान करता है। तो जरूर लिखें ईश्वर की कृपा से आपको उसका जवाब अवश्य मिलेगा। अपना सवाल हमें इस Mail id पर भेजें या whats app करें। 
premabhaktiyog@gmail.com 

9643581002 

Sunday 23 October 2016

सवाल :- हम कौन हैं ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


दोस्तों पिछले लेख में मैंने कुछ सवाल पूछे थे। क्या किसी को भी कोई जवाब नहीं मिला ? चलो मिलकर पहले सवाल का जवाब ढूढ़ते हैं। पहला सवाल है कि हम कौन हैं ?

उस ईश्वर, अल्लाह, गॉड या कोई भी अन्य नाम जिससे आप उसको पुकारते हो। उसने इस सृष्टि, दुनिया, वर्ल्ड (या कोई भी अन्य नाम जो भी आप कहते है) को बनाया। उसने इंसान  बनाया। उसने इंसान को बल-बुद्धि-विवेक दिया। जिससे इंसान सही-गलत का अंतर जान सके। बुरे-भले को पहचान सके। परन्तु इंसान ने अपने बल-बुद्धि-विवेक का उपयोग हमेशा गलत दिशा में किया। जिसके कारण वह हमेशा परेशानियों में घिरा रहता है। कुछ उदाहरण लिख रही हूँ। जिससे आप समझ जाएँ कि सही दिशा क्या है। क्या होना चाहिये और आज क्या हो रहा है। 

धर्म को धारण करना चाहिये अर्थात धर्म निभाना चाहिये।  

जैसे माता-पिता का धर्म है संतान का उत्तम पालन-पोषण, संतान को उच्च संस्कार देना।     संतान को सही राह दिखाना। 

गुरुजनों, शिक्षकों, विद्वान आदि का धर्म है। सभी को उत्तम ज्ञान देना। सही- गलत का       अंतर स्तिथि-परिस्तिथि का अनुरूप बताना। यह नहीं कि बस एक बार लिख दिया की फला कार्य सही है और फला कार्य गलत है। यह भी बताना जरुरी है कि वह कार्य क्यों गलत है और क्यों सही है ? जिस तरह एक समय में एक व्यक्ति किसी के लिए सबसे अच्छा होता है एवं किसी के लिए सबसे बुरा होता है। उसी तरह स्तिथि-परिस्तिथि पर निर्भर होता है कि कब एक ही कार्य सही है और कब वही कार्य गलत है। 

राजा का धर्म अपनी प्रजा का उत्तम पालन करना। प्रजा की रक्षा करना। अपराधियों को उचित दंड देना सीमाओं की रक्षा करना। 

इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का अपना धर्म होता है कि वह अपने बल-बुद्धि-विवेक का उपयोग निजी हित के लिए न करके उसका उपयोग समाज-देश-विश्व कल्याण एवं उन्नति के लिए करे। जिससे समस्त मानव जाति के साथ-साथ सम्पूर्ण सृष्टि ख़ुशहाल रहे। 

परन्तु आज सिर्फ धर्म की चर्चा है। धर्म कहीं नहीं है। धर्म की पहचान हमारे पहनावे,वेश-भूषा, देश और भाषा से होती है। आज वेश-भूषा, भाषा और देश के आधार पर ही धर्म बनें हैं और अनेकों शाखाएँ दिन-प्रतिदिन विकसित हो रही हैं। 

सवाल :-  हम कौन हैं ?
जवाब :-  हम इंसान हैं। हम ईश्वर की सबसे प्यारी रचना हैं। 
सवाल :-  हमारा धर्म क्या है ?
जवाब :- धर्म की परिभाषा बहुत विशाल है।  धर्म जिया जाता है। धर्म धारण किया जाता है। हमारा धर्म हमारी आयु-कार्य-रिश्ते स्तिथि के अनुरूप होता है। जिस तरह एक समय में हम एक साथ कई रिश्ते निभाते हैं। उसी तरह आयु-कार्य-रिश्ते और स्तिथि पर निर्भर हम अपना धर्म निभाते हैं। 


क्रमशः 


यदि कोई सवाल आप को परेशान करता है। तो जरूर लिखें ईश्वर की कृपा से आपको उसका जवाब अवश्य मिलेगा। अपना सवाल हमें इस Mail id पर भेजें या whats app करें। 

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Sunday 9 October 2016

स्वयं को जानो

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


हम सब इस संसार में आने के बाद सब कुछ जानते हैं। सब कुछ समझते हैं। हर बात का ज्ञान अर्जित  लेते है। इतना ज्ञान कर लेते है कि कभी-कभी यही ज्ञान हमारा दुश्मन बन जाता है। कुछ लोग अपनी सामर्थ्य से ज्यादा ज्ञान अर्जित कर लेते हैं। जिसके फलस्वरूप वो प्रत्येक कार्य का क्या परिणाम होगा। अच्छा होगा या बुरा होगा पहले ही बता देते हैं। अपने इसी ज्ञान के कारण यह लोग कभी-कभी पागल भी हो जाते हैं। 


यह संसार और इस संसार का ज्ञान, हमको हमेशा दूसरों के बारे में ज्ञान देता है। कभी यह नहीं बताता है कि  
हम कौन हैं ? 
हम को क्या चाहिये ? 
हम इस संसार में किस लिये आये हैं ?
हमारे कर्तव्य क्या हैं ? 
क्या हम मशीन हैं ? 
क्या ईश्वर ने हमको अंको के पीछे दौड़ने के लिये इस संसार में भेजा है ? 
जिस तरह से हम अपना जीवन जी रहे हैं। क्या यह उत्तम है ?
क्या इस जीवन को और उत्तम बनाया जा सकता है ? 

ऐसे बहुत से सवाल मन के अंदर बैठे हुए हैं। जिनका जवाब तलाशना अभी भी बाकि है। इन सभी सवालों का जवाब तभी मिलेगा। जब हम आत्म चिंतन के द्वारा अपने आप से मिलेंगे। स्वयं से मिलना बहुत ही आसान है। बस रास्ता पता होना चाहिये। रास्ता कौन बतायेगा ? रास्ता स्वयं ही पता चल जायेगा। बस आप स्वयं को स्वयं के लिये समय दो। 


जब सारे कार्य समाप्त करके सोने की तैयारी करो। तब सोने से पहले अपनी पूरे दिन की दिनचर्या को याद करो कि आप ने सारा दिन क्या किया ?  क्यों किया ? जो भी किया उसमें आप कहाँ थे ? फिर इस बात को याद करना की जो तुमने किया।  क्या वो सब करने के लिए ही श्री हरि  ने हमको यह जीवन दिया है ? इस  तरह प्रतिदिन करना। श्री हरि की कृपा से जल्दी ही आप की मुलाक़ात स्वयं से होगी। 


ऊपर जो सवाल लिखें  हैं उनका जवाब श्री हरि की कृपा से आपको जल्दी ही मिल जाये। 


 -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 

कोई बात जो आपको परेशान करती हो। कोई सवाल कि ऐसा मेरे साथ ही क्यूँ होता है ? आप की सभी परेशानियाँ आप स्वयं ही दूर कर सकते हो कोई और नहीं कर पायेगा। अपनी समस्या हमको लिखें। उसको दूर करने का रास्ता हम आप को बतायेंगे। 

कॉल / whatsApp करें - 9643581002 

Email- premabhaktiyog@gmail.com 



                 

Saturday 8 October 2016

आओ, प्रेमाभक्ति करें !


आगे आगे भगवान, पीछे पीछे भक्त, यह होती है पूजा-भक्ति। 
जो इस क्रिया को उल्टा करदे, उसको कहते हैं प्रेमाभक्ति।। 

श्री हरि के प्यारों,                                                                              आप श्री हरि  के जिस रूप की भी पूजा-अर्चना करते हो। अब उससे प्रेम करना शुरू कर दो। जब आप श्री हरि की पूजा-भक्ति करते हो तब आप उस हरि  को कभी-कभी, कहीं-कहीं अनुभव करते हो और जब आप उस हरि की प्रेमाभक्ति करते हो तब वह प्रत्येक क्षण आपके पास रहता है।         इस संसार की प्रत्येक पूजा से बड़ी, हर तरह के ज्ञान से बढ़कर, बिना किसी झंझट के, बिना किसी दिखावे के बस बड़े ही आराम से आप प्रेमाभक्ति योग को साध सकते हो। ना कोई मंत्र, ना कोई तंत्र, ना कोई यन्त्र बस प्रेम के बल से प्रेम की राह पे धीरे-धीरे एक एक कदम बढ़ाते हुए प्रेमाभक्ति की डगर पर बिना किसी डर के चल पड़ो। श्री हरि  को पाने का सबसे सहज तरीका है प्रेमाभक्ति का मार्ग।                                     प्राचीन काल से अब तक जिस-जिस ने प्रेमाभक्ति की राह  पकड़ी है। वो सभी भक्त श्री हरि के अत्यंत ही प्यारे रहे हैं। आदिकवि महाऋषि वाल्मीक जी को जब सप्त ऋषियों द्वारा श्री राम की प्रेमाभक्ति प्रदान की गयी। तब उनको राम शब्द का उल्टा मरा मरा जाप बताया था। राम का उल्टा  मरा मरा जपने से राम राम का जप हुआ और आदिकवि महाऋषि वाल्मीक जी ने श्री राम कथा रामायण को लिखा। 


प्रेमाभक्ति योग बड़ा ही सहज है। प्रेमाभक्ति के बारे में और चर्चा अगले अंक में करेंगे। 


जय श्री राधे श्याम जय श्री सीता राम 

गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग