Sunday 23 October 2016

सवाल :- हम कौन हैं ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


दोस्तों पिछले लेख में मैंने कुछ सवाल पूछे थे। क्या किसी को भी कोई जवाब नहीं मिला ? चलो मिलकर पहले सवाल का जवाब ढूढ़ते हैं। पहला सवाल है कि हम कौन हैं ?

उस ईश्वर, अल्लाह, गॉड या कोई भी अन्य नाम जिससे आप उसको पुकारते हो। उसने इस सृष्टि, दुनिया, वर्ल्ड (या कोई भी अन्य नाम जो भी आप कहते है) को बनाया। उसने इंसान  बनाया। उसने इंसान को बल-बुद्धि-विवेक दिया। जिससे इंसान सही-गलत का अंतर जान सके। बुरे-भले को पहचान सके। परन्तु इंसान ने अपने बल-बुद्धि-विवेक का उपयोग हमेशा गलत दिशा में किया। जिसके कारण वह हमेशा परेशानियों में घिरा रहता है। कुछ उदाहरण लिख रही हूँ। जिससे आप समझ जाएँ कि सही दिशा क्या है। क्या होना चाहिये और आज क्या हो रहा है। 

धर्म को धारण करना चाहिये अर्थात धर्म निभाना चाहिये।  

जैसे माता-पिता का धर्म है संतान का उत्तम पालन-पोषण, संतान को उच्च संस्कार देना।     संतान को सही राह दिखाना। 

गुरुजनों, शिक्षकों, विद्वान आदि का धर्म है। सभी को उत्तम ज्ञान देना। सही- गलत का       अंतर स्तिथि-परिस्तिथि का अनुरूप बताना। यह नहीं कि बस एक बार लिख दिया की फला कार्य सही है और फला कार्य गलत है। यह भी बताना जरुरी है कि वह कार्य क्यों गलत है और क्यों सही है ? जिस तरह एक समय में एक व्यक्ति किसी के लिए सबसे अच्छा होता है एवं किसी के लिए सबसे बुरा होता है। उसी तरह स्तिथि-परिस्तिथि पर निर्भर होता है कि कब एक ही कार्य सही है और कब वही कार्य गलत है। 

राजा का धर्म अपनी प्रजा का उत्तम पालन करना। प्रजा की रक्षा करना। अपराधियों को उचित दंड देना सीमाओं की रक्षा करना। 

इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का अपना धर्म होता है कि वह अपने बल-बुद्धि-विवेक का उपयोग निजी हित के लिए न करके उसका उपयोग समाज-देश-विश्व कल्याण एवं उन्नति के लिए करे। जिससे समस्त मानव जाति के साथ-साथ सम्पूर्ण सृष्टि ख़ुशहाल रहे। 

परन्तु आज सिर्फ धर्म की चर्चा है। धर्म कहीं नहीं है। धर्म की पहचान हमारे पहनावे,वेश-भूषा, देश और भाषा से होती है। आज वेश-भूषा, भाषा और देश के आधार पर ही धर्म बनें हैं और अनेकों शाखाएँ दिन-प्रतिदिन विकसित हो रही हैं। 

सवाल :-  हम कौन हैं ?
जवाब :-  हम इंसान हैं। हम ईश्वर की सबसे प्यारी रचना हैं। 
सवाल :-  हमारा धर्म क्या है ?
जवाब :- धर्म की परिभाषा बहुत विशाल है।  धर्म जिया जाता है। धर्म धारण किया जाता है। हमारा धर्म हमारी आयु-कार्य-रिश्ते स्तिथि के अनुरूप होता है। जिस तरह एक समय में हम एक साथ कई रिश्ते निभाते हैं। उसी तरह आयु-कार्य-रिश्ते और स्तिथि पर निर्भर हम अपना धर्म निभाते हैं। 


क्रमशः 


यदि कोई सवाल आप को परेशान करता है। तो जरूर लिखें ईश्वर की कृपा से आपको उसका जवाब अवश्य मिलेगा। अपना सवाल हमें इस Mail id पर भेजें या whats app करें। 

premabhaktiyog@gmail.com 

9643581002 


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