आगे आगे भगवान, पीछे पीछे भक्त, यह होती है पूजा-भक्ति।
जो इस क्रिया को उल्टा करदे, उसको कहते हैं प्रेमाभक्ति।।
श्री हरि के प्यारों, आप श्री हरि के जिस रूप की भी पूजा-अर्चना करते हो। अब उससे प्रेम करना शुरू कर दो। जब आप श्री हरि की पूजा-भक्ति करते हो तब आप उस हरि को कभी-कभी, कहीं-कहीं अनुभव करते हो और जब आप उस हरि की प्रेमाभक्ति करते हो तब वह प्रत्येक क्षण आपके पास रहता है। इस संसार की प्रत्येक पूजा से बड़ी, हर तरह के ज्ञान से बढ़कर, बिना किसी झंझट के, बिना किसी दिखावे के बस बड़े ही आराम से आप प्रेमाभक्ति योग को साध सकते हो। ना कोई मंत्र, ना कोई तंत्र, ना कोई यन्त्र बस प्रेम के बल से प्रेम की राह पे धीरे-धीरे एक एक कदम बढ़ाते हुए प्रेमाभक्ति की डगर पर बिना किसी डर के चल पड़ो। श्री हरि को पाने का सबसे सहज तरीका है प्रेमाभक्ति का मार्ग। प्राचीन काल से अब तक जिस-जिस ने प्रेमाभक्ति की राह पकड़ी है। वो सभी भक्त श्री हरि के अत्यंत ही प्यारे रहे हैं। आदिकवि महाऋषि वाल्मीक जी को जब सप्त ऋषियों द्वारा श्री राम की प्रेमाभक्ति प्रदान की गयी। तब उनको राम शब्द का उल्टा मरा मरा जाप बताया था। राम का उल्टा मरा मरा जपने से राम राम का जप हुआ और आदिकवि महाऋषि वाल्मीक जी ने श्री राम कथा रामायण को लिखा।
प्रेमाभक्ति योग बड़ा ही सहज है। प्रेमाभक्ति के बारे में और चर्चा अगले अंक में करेंगे।
जय श्री राधे श्याम जय श्री सीता राम
गीता राधेमोहन
प्रेमाभक्ति योग
गीता राधेमोहन
प्रेमाभक्ति योग
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