एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि किसी की हत्या करने से भी बड़ा दोष क्या है ? यह सुनकर गुरुदेव कुछ समय मौन रहे। उसके बाद गुरुदेव ने एक प्राचीन कथा अपने शिष्य को सुनाई। कि प्राचीन समय में एक राजा था जो बहुत ही धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ था। वह राजा अपनी प्रजा का पालन अपनी संतान के समान करता था। राजा प्रायः दान पुण्य और ब्राह्मण भोज आदि कार्य संपन्न करता रहता था।
एक बार राजा ने बहुत से ब्राह्मणों को भोज पर आमंत्रित किया। सभी ब्राह्मण भोजन करने यथा समय राजा के महल में पहुँच गए। किन्तु वहाँ एक घटना घटित हुई। जब राजा के रसोइए ने अनेक प्रकार भोजन तैयार किये थे।और जब वह खुले आँगन में खीर बना रहा था। तब ही आकाश में एक चील अपना भोजन (मरा हुआ सांप ) लेकर उड़ रही थी। किसी कारणवश मरा हुआ सांप उसके पंजों से निकल कर खीर के बर्तन में जा गिरा। इस घटना का पता किसी को भी नहीं चला। राजा ने भोज के लिए आये हुए ब्राह्मणों को भोजन परोस दिया। सभी ब्राह्मणों ने भोजन किया। परन्तु खीर विषैली होने के कारण भोजन करते ही सभी ब्राह्मण मृत्यु को प्राप्त हो गए।
इस पूरी घटना को धर्मराज यम के सचिव चित्रगुप्त अपने कार्यनुसार देख रहे थे। तब चित्रगुप्त जी ने धर्मराज यम से कहा कि धर्मराज इन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष किस के खाते में लिखूँ। राजा दोषी नहीं क्योंकि खीर विषाक्त है यह बात राजा नहीं जानता था। रसोइया भी इस से परिचित नहीं था। चील अपना भोजन लेकर जा रही थी उसका भी दोष नहीं है। सांप मृत था। तो हे धर्मराज इन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष किसको लगेगा। यह सुनकर धर्मराज यम ने कहा कुछ समय प्रतीक्षा करो।
कुछ वर्ष बीते उसी राजा के राज्य में भ्रमण करते हुए कुछ साधु पहुँचे। सभी साधु भूखे और थके हुए थे। और वे सभी भोजन एवं विश्राम की तलाश में थे। तभी उन साधुओं में से एक साधु बोले कि इस राज्य का राजा बड़ा धर्मात्मा एवं दानी है। वह साधु संतो की बड़ी सेवा करता है। क्यों ना आज चल कर राजा का आतिथ्य प्राप्त करें। सभी साधु राजा के महल जाने के लिए तैयार हो गए। तभी वहाँ एक स्त्री आई जो उन साधुओं की सभी बातें सुन रही थी। उस स्त्री ने साधुओं से कहा कि क्या तुम नहीं जानते कि राजा ने विषैला भोजन कराकर ब्राह्मणों को मारा है। राजा अधर्मी और पापी है। उस स्त्री ने राजा के बारे में साधुओं को बहुत कुछ बुरा बताया। इस पूरी घटना को धर्मराज यम ने देखा और सुना। तब धर्मराज यम ने अपने सचिव चित्रगुप्त को बुलाया और कहा उन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष इस निंदा करने वाली स्त्री के खाते में लिख दो। क्योंकि किसी की हत्या से भी बड़ा दोष किसी के चरित्र की हत्या करना है।
कथा का सार यह है कि जिस विषय, घटना, व्यक्ति आदि के बारे में आप नहीं जानते उस पर अपनी राय कभी भी ना दें।
स्रोत अज्ञात
गीता राधेमोहन
प्रेमाभक्ति योग दिल्ली
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प्रेमाभक्ति योग - ईश्वर से प्रेम करना ही प्रेमाभक्ति है। प्राचीन समय में पह्लाद से लेकर वर्तमान तक जिसने भी ईश्वर से विशुद्ध प्रेम किया है। उसने सहज ही में ईश्वर को प्राप्त किया है। प्रेमाभक्ति ईश्वर को पाने का सरल और सहज रास्ता है। इस पर चलने के लिए सिर्फ़ एक ही शर्त है कि आप को विशुद्ध प्रेम करना आना चाहिए। You can get perfect solution to your any problem From Premabhakti Yog.
Tuesday 20 December 2016
हत्या से बड़ा दोष ?
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