Monday 14 November 2016

प्रेमाभक्ति योग क्या है ?

श्री हरि  के प्यारों,
                          -: जय श्री राधे-श्याम  जय श्री सीता-राम :- 


श्री हरि की कृपा से और अपने बुद्धि विवेक से मैं आप को प्रेमाभक्ति योग के बारे में बताने की चेष्टा कर रही हूँ। यह शब्द प्रेमाभक्ति बहुत छोटा सा है, परन्तु इस शब्द में सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है। इस शब्द की व्याख्या करना गागर में सागर भरने के विचित्र प्रयास के जैसा है। प्रेमाभक्ति योग को समझने के लिए इसको ऐसे लिखते हैं - प्रेम-भक्ति-योग !


आइये पहले योग को समझते हैं। योग का अर्थ जोड़ना / मिलाना होता है। हमारे द्वारा लिखे हुए योग का अर्थ है आत्मा का परमात्मा से जोड़ना / मिलाना आदि। आज जिस योग ( योगा ) की चर्चा चारों ओर हैं। उसको शारीरिक व्यायाम कहते हैं। या हठयोग कहते हैं। 


अब थोड़ा सा भक्ति के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। श्री हरि को पाने के कई तरीक़े हैं। कोई तप- भक्ति से पाने की कोशिश करता है तो कोई जप-भक्ति से, कोई हठ-भक्ति से हरि को पाने का प्रयास करते हैं। भक्ति के भिन्न-भिन्न अनेक रूप हैं। लेकिन श्री हरि ने प्रेम को भक्ति का सबसे श्रेष्ठ रूप बताया है। जब प्रेम और भक्ति मिल जाते हैं तब वह प्रेमाभक्ति योग कहलाता है। इस योग से आत्मा का परमात्मा से मिलन बहुत ही सरलता से हो जाता है। प्रेमाभक्ति का प्रसाद सर्वप्रथम श्री कृष्णचंद्र ने गोकुल की गोपियों द्वारा अपने बड़े भाई श्री उद्धव जी को दिलाया था।  यह प्रसंग ऐसे है कि --




जब कंस ने बाबा नन्द को श्री बलराम और श्री कृष्ण के साथ धनुष यज्ञ देखने के लिए मथुरा बुलाया। तब श्री कृष्ण ने नन्द बाबा और भाई बलराम के साथ मथुरा में आकर कई लीलाएँ की जैसे कुब्जा को सुंदरता प्रदान की, धोबी को मुक्ति दी, दर्जी से वस्त्र सिलवाकर उसकी इच्छा पूरी की, शिव धनुष को तोड़ा, कंस ने द्वार पर एक पागल हाथी बँधवाया था, यह सोचकर कि यह हाथी बलराम और कृष्ण को सभा स्थल पहुँचने से पहले यहीं द्वार पर मार देगा परन्तु बलराम और कृष्ण ने उस हाथी को मुक्ति देकर स्वर्ग भेज दिया। उसके बाद मल्लयुद्ध लीला और फिर कंस वध किया। कंस वध के बाद बाबा नन्द और सभी गोकुलवासी जो उनके साथ मथुरा आये हुए थे वापिस गोकुल लौट गए। श्री कृष्ण और श्री बलराम मथुरा में ही रुक गए। 




यहाँ मथुरा में श्री कृष्ण के रिश्ते के एक बड़े भाई थे, जिनका नाम उद्धव था।  उद्धव जी ब्रह्म ज्ञानी थे। उद्धव जी को अपने ब्रह्म ज्ञानी होने का अहंकार भी था। श्री कृष्ण ने उनके अहंकार को ख़त्म करने और उनको ब्रह्म ज्ञान का मूल समझाने के लिए एक लीला रची । कि एक दिन श्री कृष्ण अपने महल में बैठे रो रहे हैं तभी वहाँ पर उद्धव जी आते हैं और उनसे रोने का कारण पूछते हैं।  श्री कृष्ण कहते हैं कि मुझे ब्रज की याद आ रही है। मुझे अपने सखा और गोपियाँ याद आ रहीं हैं। मुझे राधा जी, मैया यशोदा, बाबा नन्द सभी की याद सता रही है।  मुझ से ब्रज बिसारा नहीं जाता है। इस कारण मेरी आँखें भर आती हैं। यह सुनकर उद्धव जी बोले कि आप साक्षात् ईश्वर हो, ब्रह्म हो यदि आप ही इस प्रकार मोह-माया में उलझोगे तो प्राणी मात्र का क्या होगा। जिसको आप की माया प्रति क्षण ही भ्रमित करती है। श्री कृष्ण कहते हैं कि भैया मैं तो मान जाऊँ परन्तु ब्रज की गोपियाँ मुझे इस प्रकार प्रेम करती हैं कि उनके प्रेम की पुकार मुझे प्रति क्षण बैचेन करती है। मैंने उन्हें कई बार समझाया परन्तु वह मानतीं ही नहीं हैं। श्री कृष्ण ने उद्धव जी से कहा कि आप तो ब्रह्म ज्ञानी हैं। आप गोकुल जा कर गोपियों को ब्रह्म ज्ञान दें जिससे कि वह सब ब्रह्म की आराधना से इस मोह-माया से मुक्त हो जाएँ। श्री कृष्ण ने एक पत्र गोपियों के नाम लिखा। जिसे लेकर उद्धव जी गोकुल पहुँचे। जब गोपियों से उनका वार्तालाप हुआ। तब उनका सारा ब्रह्म ज्ञान धरा का धरा रह गया और गोपियों से प्रेमाभक्ति का प्रसाद पाकर उनका सारा अहंकार भी ख़त्म हो गया। उद्धव जी जब गोकुल आए थे तब वह एक ब्रह्म ज्ञानी थे। परन्तु जब वह वापिस मथुरा लौटे तब वह हरि प्रेमी थे। पहले उद्धव जी ध्यान लगा कर हरि के दर्शन करते थे। प्रेमाभक्ति के बाद हर क्षण हरि से मिलते थे। ध्यान लगाने की आवश्यकता ही नहीं थी। 


प्रेमाभक्ति का एक बहुत ही अनुपम गीत है अवश्य देखें। 



विषय बहुत विस्तृत है। संक्षेप में लिखने से जो बात आप तक पहुँचाना चाहती हूँ, वह असम्भव है। इसलिए कुछ विचार अगले लेख में साझा करुँगी। धन्यवाद !

आप को यह लेख कैसा लगा। कृपा ज़रूर बताएं। संपर्क सूत्र निम्न हैं। 

whatsApp - 9643581002 

Email- premabhaktiyog@gmail.com 



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