Wednesday, 28 December 2016

लोग मुझसे पूछते हैं कि मेरा गुरु कौन है !

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ॐ नमो श्री हरि !
हे श्याम ! 
लोग मुझसे  पूछते हैं कि मेरा गुरु कौन है 
मैं तेरा नाम बता देती हूँ 
लोग कहते हैं कि श्याम तो सबके हैं 
पर तुमने दिक्षा किससे ली 
मैं फिर तेरा नाम बता देती हूँ 
लोग हँस कर कहते हैं ख्वाब में मंत्र दिया होगा 
अब तू ही बता कि मैं  क्या कहूँ 
मुझे तो तेरी पूरी जीवन यात्रा ही शिक्षा देती है 
हारती हूँ जब तो मनोबल सम्भालती  है 
जीतने पर मेरा अहंकार हर लेती है 
तेरा गऊ चराना सीखता है काम कोई छोटा नहीं 
और गोपियों से कर मांगना हक़ के लिये लड़ना सीखता है 
बालपन में दैत्यों को मार कर तूने बताया कि 
शक्ति उम्र नहीं देखती उसे जब चाहो तब पा लो 
और क्या-क्या बताऊँ तू कुछ सब जानता  है 
हे श्याम ! एक यही प्रार्थना है 
मुझे हर पल यूँहिं राह दिखाते रहना 
मेरे जीवन के कुरुक्षेत्र में होने वाले धर्मयुद्ध में 
मुझे अर्जुन की भाँति सम्भाल लेना 
जब-जब विचलित हो मन मेरा 
पाऊँ गीता ज्ञान तेरा 
नाते-रिश्तों  में पड़कर, धर्म-पथ से भटकू ना 
बात न्याय की करते हुए, अपनों-गैरों में अटकू ना 
जो तुझसे शिक्षा पाई है, उस शिक्षा से सरोकार रहे 
पाखंड-झूठ-मक्कारी पर, तेरे नाम का सदा ही वार रहे 
मैं कहीं भी रहूँ, कैसे भी रहूँ, रहूँ रहूँ या ना भी रहूँ 
पर,  मेरी आत्मा पर तेरे प्रेम का सदा  सदा  श्रृंगार रहे 

 ॐ नमो श्री हरि !
ॐ नमो श्री राम कृष्ण हरि !

गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग संस्थान 

Sunday, 25 December 2016

एक प्यारी सी शिकायत अपने प्रीतम श्याम से !


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ॐ नमो श्री हरि !
एक प्यारी सी शिकायत अपने प्रीतम श्याम से ! 

हे श्याम !
तुम तो ऐसे ना थे 
तुम तो नंगे पैर दौड़ पड़ते थे 
भक्तों की खातिर
अब क्या महेंदी लगा बैठे हो 
तुम तो स्वयं मिलने आते थे उनसे 
जो नेकी की राह के राही होते थे 
आज क्या कोई नेकी नहीं करता 
या तू ही अब नेक मानव पैदा नहीं करता 
याद है तू तरसा करता था 
ब्रज की गोपियों के लिए 
क्या वैसा प्रेम अब कोई नहीं करता 
बाबा नामदेव ने जब बालपन में 
निज माँ बाबा की आज्ञा पालन हेतु तोहे पुकारा
तू सच में भोजन करने आया था 
और वचन बद्ध हो तूने सदा नामा की पुकार सुनी थी 
तू ने भोजन की पुकार तो सबकी सुनी थी 
क्या आज कल तोहे भूख नहीं लगती 
और सुनो श्याम प्यारे 
ये जो आप हम से आँख मिचौली खेल रहे हो 
इसमें भी फायदा हमारा ही है 
यदि तुम पकड़े गए तो हम जी भर तुम्हें देखेंगे 
और यदि नहीं पकडे गए तो प्रतीक्षा तुम करोगे हम नहीं 
क्योंकि हम तो बड़े प्रेम से प्रेम करते हैं तुमसे 
और बिन देखे प्रेम करने का आनन्द  तुम भी भूले नहीं हो 
माना श्याम प्यारे तुम दिलबर हो पर दिलदार तो हम हैं
तुम बड़े काम के हो पर तुम्हारे इश्क़ में बेकार तो हम हैं 
ऐसा दुनिया वाले कहते हैं कि तू सबका यार है 
पर यारों के यार के यार तो हम हैं 
तू कुछ ना दे मुझे बस मेरे प्रेम का श्रृंगार बन जा 
अपनी मुरली की धुन मुझे बना ले 
और मेरे सुर की झनकार बन जा 
जय जय श्री राधे ! श्री राधे ! श्री राधे !  

गीता राधेमोहन
प्रेमाभक्ति योग संस्थान दिल्ली  




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ॐ नमो श्री हरि 

हे श्याम !
खामोश हूँ, चुप हूँ
गलत तो नहीं हूँ
असफल हूँ, सफल थोड़ी कम हूँ 
मैं पैसा थोड़ा कम कमाती हूँ
पर गलत तो नहीं हूँ
मैं झूठ नहीं बोल पाती
मैं सच बोलती हूँ
तो क्या मैं गलत हूँ
मुझे भरोसा है तुझ पर
क्या यह खता है मेरी
तुझ पर भरोसा करती हूँ
तो क्या गलत करती हूँ
तेरी दी हुई शिक्षा का अनुशरण करती हूँ
तेरे आदेश का पालन करती हूँ
तो क्या गलत करती हूँ
अन्याय से लड़ना गलत है तो हाँ मैं गलत हूँ
लोगों को बेख़ौफ़ करना गलत है तो हाँ मैं गलत हूँ
खामोश तो तू भी रहता है
तो क्या तू भी गलत है
अब तेरी ख़ामोशी मेरा दम घोटती है
टूटती हुई उम्मीद तेरी ओर देखती है
डूबती हुई मेरी आशा को
केवल तुझ से आस है
यह आस तुझसे करती हूँ
तो क्या गलत हूँ मैं
तो क्या गलत करती हूँ 

ॐ नमो श्री हरि
गीता राधेमोहन 
प्रेमाभक्ति योग संस्थान दिल्ली


Tuesday, 20 December 2016

हत्या से बड़ा दोष ?

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एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि किसी की हत्या करने से भी बड़ा दोष क्या है ? यह सुनकर गुरुदेव कुछ समय मौन रहे। उसके बाद गुरुदेव ने एक प्राचीन कथा अपने शिष्य को सुनाई। कि प्राचीन समय में एक राजा था जो बहुत ही धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ था। वह राजा अपनी प्रजा का पालन अपनी संतान के समान करता था। राजा प्रायः दान पुण्य और ब्राह्मण भोज आदि कार्य संपन्न करता रहता था। 

एक बार राजा ने बहुत से ब्राह्मणों को भोज पर आमंत्रित किया। सभी ब्राह्मण भोजन करने यथा समय राजा के महल में पहुँच गए। किन्तु वहाँ एक घटना घटित हुई। जब राजा के रसोइए ने अनेक प्रकार भोजन तैयार किये थे।और जब वह खुले आँगन में खीर बना रहा था। तब ही आकाश में एक चील अपना भोजन (मरा हुआ सांप ) लेकर उड़ रही थी। किसी कारणवश मरा हुआ सांप उसके पंजों से निकल कर खीर के बर्तन में जा गिरा। इस घटना का पता किसी को भी नहीं चला।  राजा ने भोज के लिए आये हुए ब्राह्मणों को भोजन परोस दिया। सभी ब्राह्मणों ने भोजन किया। परन्तु खीर विषैली होने के कारण भोजन करते ही सभी ब्राह्मण मृत्यु को प्राप्त हो गए। 

इस पूरी घटना को धर्मराज यम के सचिव चित्रगुप्त अपने कार्यनुसार देख रहे थे। तब चित्रगुप्त जी ने धर्मराज यम से कहा कि धर्मराज इन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष किस के खाते में लिखूँ। राजा दोषी नहीं क्योंकि खीर विषाक्त है यह बात राजा नहीं जानता था। रसोइया भी इस से परिचित नहीं था। चील अपना भोजन लेकर जा रही थी  उसका भी दोष नहीं है। सांप मृत था। तो हे धर्मराज इन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष किसको लगेगा। यह सुनकर धर्मराज यम ने कहा कुछ समय प्रतीक्षा करो। 

कुछ वर्ष बीते उसी राजा के राज्य में भ्रमण करते हुए कुछ साधु पहुँचे। सभी साधु भूखे और थके हुए थे। और वे सभी भोजन एवं विश्राम की  तलाश में थे। तभी उन साधुओं में से एक साधु बोले कि इस राज्य का राजा बड़ा धर्मात्मा एवं दानी है। वह साधु संतो की बड़ी सेवा करता है। क्यों ना आज चल कर राजा का आतिथ्य प्राप्त करें। सभी साधु राजा के महल जाने के लिए तैयार हो गए। तभी वहाँ एक स्त्री आई जो उन साधुओं  की सभी बातें सुन रही थी। उस स्त्री ने साधुओं से कहा कि क्या तुम नहीं जानते कि राजा ने विषैला भोजन कराकर ब्राह्मणों  को मारा है। राजा अधर्मी और पापी है। उस स्त्री ने राजा के बारे में साधुओं  को बहुत कुछ बुरा बताया। इस पूरी घटना को धर्मराज यम ने देखा और सुना। तब धर्मराज यम ने अपने सचिव चित्रगुप्त को बुलाया और कहा उन ब्राह्मणों की मृत्यु का दोष इस निंदा करने वाली स्त्री के खाते में लिख दो। क्योंकि किसी की हत्या से भी बड़ा दोष किसी के चरित्र की हत्या करना है। 

कथा का सार यह है कि जिस विषय, घटना, व्यक्ति आदि के बारे में आप नहीं जानते उस पर अपनी राय कभी भी ना दें। 
स्रोत अज्ञात 

गीता राधेमोहन 

प्रेमाभक्ति योग दिल्ली 




Sunday, 4 December 2016

ॐ नमो श्री राधे श्याम

वो पूछते हैं हमसे 
हमें प्रेम कितना है 
हम हँस कर कहते हैं 
मापा नहीं कभी 
वो पूछते हैं हमसे 
प्रेम निभाओगे कैसे 
हम हँस कर कहते हैं 
यह भी जाना नहीं कभी 
वो मुस्काकर कहते हैं 
प्रेम पीड़ा का सागर है 
राह में विरह की नदिया 
दुनिया के ताने भी 
तुमको सुनने होंगे 
कांटे बोलो के 
पलकों से चुनने होंगे 
इस असहनीय पीड़ा को 
कहो कैसे सहोगे 
हम हँस कर कहते हैं 
क्या डरा रहे हमको 
ये उल्टी-सीधी पट्टी 
क्या पढ़ा रहे हमको 
हमारे रोम-रोम में श्याम समाया है 
हमने तो राधे श्याम को अपना बनाया है 
मोहन की एक मुस्कान पे 
सौ कष्ट कबूल करते हैं 
बस याद राधे श्याम की 
बाकि सब भूल करते हैं 
यह अहंकार नहीं हमारा 
यह प्यार है प्यारे 
जो हम तुमसे करते हैं 
बस तुमसे करते हैं 
ॐ नमो श्री राधे श्याम 

गीता राधे मोहन 
प्रेमाभक्ति योग दिल्ली